Right To Education
28 नवंबर 2001 को लोकसभा में और 15 मई 2002 को राज्यसभा में 93 संविधान संशोधन पास किया था किसी तकनीकी कारण से इस सारणिक संशोधन को लोक सभा द्वारा 27 नवंबर 2002 को पुनः पास किया गया था इसके पश्चात दिसंबर 2002 को राष्ट्रपति ने रेलवे संवैधानिक संशोधन को अपनी स्वीकृति दे दी थी राष्ट्रपति की स्वीकृति के पश्चात शिक्षा का अधिकार भारत में मौलिक अधिकार बन गया क्योंकि इसकी व्यवस्था संविधान के भाग तीसरे में की गई है जिसमें भारतीय नागरिकों को मौलिक अधिकार दिए गए हैं वैधानिक संशोधन द्वारा संविधान में व्यवस्था की गई है कि 6 वर्ष से 14 वर्ष तक की आयु के सभी भारतीय बच्चों को शिक्षा का मौलिक अधिकार प्राप्त होगा इसके पश्चात ही यह व्यवस्था भी की गई ताकि बच्चों के माता-पिता और उनके शिक्षकों का यह कर्तव्य होगा कि वह अपने बच्चों के लिए ऐसी उचित सुविधाएं एवं अवसर उपलब्ध करवाएं जिनके बच्चों को शिक्षा प्राप्त हो सके 6 वर्ष की आयु के बच्चों की बाल्यावस्था एवं शिक्षा की देखभाल करने के लिए सरकार भी आवश्यक व्यवस्थाएं करेंगे6 वर्ष से 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों का मौलिक अधिकार उस तिथि से लागू होगा जो कि भारत सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा निश्चित की जाएगी शिक्षा के मौलिक अधिकार के व्यवहारिक रूपों में लागू होने के पश्चात भारतीय बच्चों मैं इस अधिकार के उल्लंघन होने पर अथवा इस अधिकार को लागू करवाने के लिए वेद न्यायालय में प्रार्थना पत्र दे सकेंगे क्योंकि संविधान के भाग्य में दिए गए मौलिक अधिकार न्याय संगत है और उन्हें न्यायालय द्वारा लागू करवाया जा सकता है
इस मौलिक अधिकार के लागू होने के पश्चात हर बच्चे का यह मौलिक अधिकार होगा कि वह पहली कक्षा से आठवीं तक की शिक्षा मुफ्त और अनिवार्य रूप से प्राप्त करेगा बच्चे को स्कूल में दाखिला देने से किसी भी आधार पर मना नहीं किया जा सकता है सबसे बड़ी बात है कि प्राइवेट और भी इसके दायरे में हैं शिक्षा के अधिकार के तहत यह सुनिश्चित करेगा उसके राज्य में बच्चों को अनिवार्य शिक्षा प्राप्त हो नहीं हो बच्चों को शिक्षा के साथ अनिवार्य आवश्यक सुविधाएं भी उपलब्ध होनी चाहिए खेलकूद के लिए खेल सामग्री देने के लिए मैदान
शिक्षा के अधिकार को हम सभी क्षेत्रों से लागू हुआ मानेंगे यदि भारत में रहने वाले जनजातीय क्षेत्रों के लोगों के शिक्षा से संबंधित अधिकारों के प्रति जागरुक किया जाए तथा उन्हें शिक्षा प्राप्त करने के लिए सचेत किया जाए हम देखते हैं कि जनजातीय क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों में शिक्षा के विषय में अज्ञानता होती है इस अज्ञानता का कारण उनका पारिवारिक गरीबी परिवेश और उनका पृष्ठ पृष्ठभूमि होती है जनजाति क्षेत्रों के लोग हिंदी भाषा या राज्य की मुख्य भाषा से भी अनभिज्ञ होते हैं वह बच्चा जो पहली बार स्कूल में जाता है तो उसे हिंदी भाषा या राज्य की मुख्य भाषा में वार्तालाप कोमा संचार करने में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है अतः सरकार को चाहिए कि वह ऐसे अध्यापक पैदा करें जो जनजाति क्षेत्रों के लोगों को उनकी मातृभाषा में ही शिक्षा ग्रहण करवाएं सके परंतु यह शिक्षा केवल मात्र शुरुआती सालों में ही होनी चाहिए इसके पश्चात यदि जागरूक हो जाता है तो अन्य भाषा जिसे हिंदी इंग्लिश या राज्य की मुख्य भाषा में भी ध्यान दिया जा सकता है यह शिक्षा दी जाती है
Right To Education
Reviewed by Narender
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August 21, 2018
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