मौलिक अधिकार | fundamental rights
दोस्तों आज हम भारतीय संविधान में दिए गए "मौलिक अधिकारों" के विषय में विस्तार से चर्चा करेंगे। तो चलिए शुरुआत करते हैं।
1 कानून के समक्ष समानता अनुच्छेद 14: अनुच्छेद 14 के अनुसार प्र्त्येक व्यक्ति कानून के समान है। कानून के समक्ष धनी, निर्धन, रंग, नस्ल जाति या धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं हो सकता है।
2 . भेदभाव की मनाही अनुच्छेद 15: राज्य के द्वारा कोई ऐसा कानून नहीं बनाया जा सकता है जिसके अधीन धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव हो।
सार्वजनिक कुएं, तालाब, स्नान घाट, सड़क, बिना भेदभाव के सभी व्यक्तियों के लिए समान रूप से खुले हैं।सरकार स्त्रियों बच्चों के हितों के लिए विशेष कानून का निर्माण सकती है और अनुसूचित जातियों व जनजातियों या अन्य पिछड़े वर्गों के लिए विशेष कानूनो का निर्माण कर सकती है ऐसे में इस मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।
3. अवसर की समानता आर्टिकल 16 :भारतीय सविधान वर्णित करता है कि रोजगार या राज्य के अधीन किसी पद की नियुक्ति के लिए सब नागरिकों को समान अवसर दिए जाएंगे। धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, वंश, जन्म स्थान, निवास स्थान के आधार पर रोजगार या राज्य के अधीन किसी पद पर नियुक्ति के विषय में भेदभाव नहीं किया जाएगा। नागरिकों की किसी बिछड़ी श्रेणी के लिए नौकरियां आरक्षित रखी जा सकती है। इसी अनुच्छेद के कारण ही भारत में आरक्षित सीटें है
4 अस्पृश्यता की समाप्ति अनुच्छेद 17: इस अनुच्छेद के द्वारा अस्पृश्यता को समाप्त किया गया है। तथा व्यवस्था की गई है की अस्पृश्यता को किसी भी रुप में है व्यवहार में नहीं लाया जाएगा। अस्पृश्यता के परिणाम स्वरूप किसी भी प्रकार का बंधन लगाना या रोक लगाना कानूनन निषेध है। यदि कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार से अस्पृश्यता को व्यवहार में लाता है तो उसे कानून के अनुसार दंड दिया जाएगा।
5 उपाधियों की समाप्ति अनुच्छेद 18: सैनिक या शैक्षणिक उपाधियों को छोड़ कर राज्य द्वारा किसी भी नागरिक को कोई सम्मान नहीं दिया जाएगा। भारत का कोई भी नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा, कोई भी व्यक्ति जो भारत का नागरिक नहीं है तथा जो राज्यों के किसी लाभप्रद पर सुशोभित है, राष्ट्रपति की स्वीकृति के बिना किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि प्राप्त नहीं करेगा ।
कोई भी व्यक्ति जो राज्य के किसी लाभप्रद पद पर सुशोभित है, राष्ट्रपति की स्वीकृति के बिना कोई भी धन या किसी प्रकार का पद किसी विदेशी सरकार से स्वीकार नहीं करेगा।
2 स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद 19 से 22
स्वतंत्रता के अधिकारो के कई रुप हैं तथा भारतीय संविधान में अधिकार के भिन्न-भिन्न रूपों का वर्णन अनुच्छेद 19 से 22 तक किया गया है स्वतंत्रता के अधिकार के भिन्न भिन्न पक्षो का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है।
अनुछेद 19 के अंतर्गत 6 प्रकार की सवतंत्रता है।
1 भाषण देने तथा विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता: भारतीय नागरिकों को भाषण देने तथा अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता दी गई है। यह स्वतंत्रता असीमित नहीं है क्योंकि स्वतंत्रता पर कानून द्वारा उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। परन्तु यदि सरकार कानून द्वारा अनुचित पाबंदियां लगाती है, तो सर्वोच्च न्यायालय सरकार कि ऐसे फैसले को असंवैधानिक घोषित कर सकती है यह बात उल्लेखनीय है कि संविधान द्वारा प्रेस की स्वतंत्रता का विशेष रूप से वर्णन नहीं किया गया है। मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉक्टर अंबेडकर ने संविधान सभा में कहा था की प्रैस की स्वतंत्रता का विशेष वर्णन करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि प्रेस की स्वतंत्रता भाषण देने की तथा विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता में ही निहित है।
2 शास्त्रों के बिना शांतिपूर्ण ढंग से इकट्ठा होने की स्वतंत्रता: भारतीय नागरिकों को अपने विचार व्यक्त करने तथा दूसरों के विचार सुनने के योग्य बनाने के लिए इस अनुच्छेद द्वारा उनको शस्त्रों के बिना शांतिमय ढंग से एकत्रित होने की होने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है। नागरिकों कि इस स्वतंत्रता पर भी भारत की प्रभुसत्ता तथा अखंडता या सार्वजनिक व्यवस्था के हितों को सम्मुख रखकर उचित बंधन लगाए जा सकते हैं।
3 समुदाय या संघ बनाने की स्वतंत्रता: भारतीय नागरिकों को अपने उचित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु समूह या संघ बनाने की आज्ञा भारत का संविधान देता है। नागरिकों की स्वतंत्रता असीमित नहीं है। इस पर भी उचित प्रतिबंध लगाएं जा सकते हैं। यदि बात भारत की एकता व अखंडता को खतरा पैदा करने वाली हो।
4 समस्त भारत में भ्रमण करने की स्वतंत्रता: भारत एक विशाल देश है। इसमें विभिन्न जातियों धर्मों के लोग रहते हैं। इसीलिए भारतीय नागरिकों को समस्त देश में भ्रमण करने की स्वतंत्रता दी गई है। देश की किसी एक किनारे से दूसरे किनारे तक जाने के लिए कोई आज्ञा पत्र प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है।
5 देश के किसी भी भाग में रहने तथा निवास स्थान बनाने की स्वतंत्रता: भारतीय संविधान देशवासियों को यह स्वतंत्रता देता है कि वे भारत के किसी भी स्थान में अपना निवास स्थान बना सकते है। संविधान द्वारा दी गई इस स्वतंत्रता के फलस्वरुप ही आज हम देखते हैं कि प्रत्येक प्रांत के लोग भिन्न भिन्न भागों में निवास कर रहे हैं परंतु अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सरकार इस पर उचित प्रतिबंध भी लगा सकती है।
6 कोई भी रोजगार व्यवसाय या व्यापार करने की स्वतंत्रता: प्रत्येक नागरिक स्वेच्छा से किसी भी रोजगार या व्यवसाय को अपना सकता है। नागरिकों की स्वतंत्रता पर राज्य कानून द्वारा जनसाधारण के हितों के लिए उचित बंधन लगा सकती है। इसके अतिरिक्त किसी विशेष रोजगार के लिए राज्य की ओर से शैक्षणिक तकनीकी व्यापारिक योग्यताएं निश्चित की जा सकती हैं।
अनुच्छेद 20 किसी व्यक्ति को किसी ऐसे कानून का उल्लंघन करने पर दंड नहीं दिया जा सकता जो कानून उसके अपराध करने के समय लागू ना हो। किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक से अधिक बार दंडित नहीं किया जा सकता। किसी अपराधी को स्वयं के विरुद्ध गवाही देने के लिए विवश नहीं किया जा सकता।
अनुच्छेद 21 किसी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित विधि के अतिरिक्त जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता।
अनुच्छेद 22 कैदियों के अधिकारों की घोषणा करता है । इस अनुच्छेद के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उनके अपराध के संबंध में बताए बिना बंदी नहीं बनाया जा सकता। अपराधी को किसी भी वकील से परामर्श लेने की छूट है। अपराधी को बंदी बनाने के 24 घंटे के अंदर निकटवर्ती न्यायालय में पेश करना आवश्यक है।
3 शोषण के विरुद्ध अधिकार अनुच्छेद 23 से 24
इस अनुच्छेद के अंतर्गत नागरिकों को शोषण की विरुद्ध अधिकार प्रदान किया गया है अनुच्छेद 23 में व्यवस्था की गई है मानव व्यापार, बिना वेतन के बलपूर्वक कार्य करवाना तथा किसी अन्य कार्य को बलपूर्वक करवाने का प्रतिषेध किया गया है। इसका उल्लंघन करने पर दंड दिया जाएगा। सरकार सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए आवश्यक सेवा करने की योजना लागू कर सकती है।
अनुच्छेद 24 अनुसार 14 वर्ष से कम आयु के किसी बच्चे को किसी कारखाने या खान में या कठिन कार्य वाली नौकरी नहीं दी जा सकती। भारतीय संविधान में ऐसे अधिकार का होना अत्यावश्यक था ।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद 25 से 28
अनुच्छेद 25 में व्यवस्था की गई है किसी भी व्यक्ति को किसी भी धर्म को मानने तथा का प्रचार-प्रसार करने की स्वतंत्रता है परंतु उसका यह धर्म सार्वजनिक व्यवस्था नैतिकता और मौलिक अधिकारों के विरोधी ना हो। किसी धार्मिक विचार से संबंधित आर्थिक वित्तीय राजनीतिक या किसी अन्य और सांप्रदायिक कार्यों को नियमबद्ध या सीमित करने के लिए राज्य कानून बना सकता है।
अनुच्छेद 26 के अंतर्गत यह व्यवस्था की गई है कि प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी वर्ग को धर्म के लिए संस्थाएं स्थापित करने का अधिकार है। इसके अतिरिक्त उन्हें अपने धर्म के कार्य का प्रबंध करने, चल तथा अचल संपत्ति प्राप्त करने तथा रखने एवं ऐसी संपत्ति का कानून अनुसार प्रबंध करने का भी अधिकार प्राप्त है। अनुच्छेद 27 के अंतर्गत यह व्यवस्था की गई है कि किसी भी व्यक्ति को कोई ऐसा कर देने के लिए विवश नहीं किया जा सकता जिसका एकत्रित किया गया धन किसी विशेष धर्म या धार्मिक संप्रदाय की उन्नति के लिए व्यय किया जाना हो।
अनुछेद 28 में यह व्यवस्था की गई है किसी भी सरकारी शैक्षणिक संस्थान मैं कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती है । ऐसी शिक्षण संस्थायें जो कि राज्य से मान्यता प्राप्त है या राज्य से वित्तीय सहायता प्राप्त करती है, किसी व्यक्ति को संस्थाओं में दी जा रही धार्मिक शिक्षा या धार्मिक पूजा पाठ में सम्मिलित होने के लिए विवश नहीं किया जा सकता।
संस्कृति तथा शैक्षणिक अधिकार अनुच्छेद 29 और 30
अनुच्छेद 29 के अंतर्गत नागरिकों को तथा अल्पसंख्यक वर्ग को सांस्कृतिक तथा शिक्षा संबंधी अधिकार दिए गए हैं। अनुच्छेद 29 यह व्यवस्था करता है कि भारत की भूमि या उसके किसी भाग में रहने वाले नागरिकों को अपनी भाषा लिपि संस्कृति को सुरक्षित रखने का अधिकार है। सरकारी शिक्षण संस्थाएं या राज्य से वित्तीय सहायता प्राप्त करने वाले संस्थाओं में किसी नागरिक को धर्म नस्ल जाति भाषा के आधार पर प्रवेश देने से इनकार नहीं कर सकता है ।
अनुछेद 30 में यह व्यवस्था की गई है कि धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यकों को स्वेच्छा से शिक्षण संस्थाएं स्थापित करने का तथा उन का प्रबंध करने का अधिकार है। शिक्षण संस्थाओं को सहायता देते समय किसी शिक्षण संस्थान से किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा।
संविधानिक उपचारों का अधिकार अनुच्छेद 32
मौलिक अधिकारों को संविधान में अंकित करना सर्वथा व्यर्थ होता यदि इन अधिकारों को सुरक्षा देने का कोई प्रबंधान ना होता। इसीलिए संविधान में अंकित मौलिक अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए अनुच्छेद 32 को संविधान में अंकित किया गया । इस प्रकार यदि किसी व्यक्ति के अधिकारों की अवहेलना होती है तो वहां व्यक्ति सीधे सर्वोच्च न्यायालय में अपने अधिकारों के लिए लड़ सकता है। सर्वोच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों को लागू करवाने के लिए निम्नलिखित लेख जारी करता है।
1 बंदी प्रत्यक्षीकरण लेख
2 परमादेश लेख
3 प्रतिषेध लेख
4 उत्प्रेषण लेख
5 अधिकार पृच्छा लेख
भारतीय संविधान में अनुच्छेद 14 से 32 तक भारतीयों के लिए मौलिक अधिकार प्रदान किये गए हैं, जो की पूर्ण रुप से भारतीयों पर लागू होते हैं। इन्हे निम्लिखित भागों में बांटा गया है।
1. समानता का अधिकार 2 स्वतंत्रता का अधिकार है भारतीय 3 शोषण के विरुद्ध अधिकार 4 धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार 5 सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक अधिकार
1 समानता का अधिकार अनुच्छेद 14 से 181 कानून के समक्ष समानता अनुच्छेद 14: अनुच्छेद 14 के अनुसार प्र्त्येक व्यक्ति कानून के समान है। कानून के समक्ष धनी, निर्धन, रंग, नस्ल जाति या धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं हो सकता है।
2 . भेदभाव की मनाही अनुच्छेद 15: राज्य के द्वारा कोई ऐसा कानून नहीं बनाया जा सकता है जिसके अधीन धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव हो।
सार्वजनिक कुएं, तालाब, स्नान घाट, सड़क, बिना भेदभाव के सभी व्यक्तियों के लिए समान रूप से खुले हैं।सरकार स्त्रियों बच्चों के हितों के लिए विशेष कानून का निर्माण सकती है और अनुसूचित जातियों व जनजातियों या अन्य पिछड़े वर्गों के लिए विशेष कानूनो का निर्माण कर सकती है ऐसे में इस मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।
3. अवसर की समानता आर्टिकल 16 :भारतीय सविधान वर्णित करता है कि रोजगार या राज्य के अधीन किसी पद की नियुक्ति के लिए सब नागरिकों को समान अवसर दिए जाएंगे। धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, वंश, जन्म स्थान, निवास स्थान के आधार पर रोजगार या राज्य के अधीन किसी पद पर नियुक्ति के विषय में भेदभाव नहीं किया जाएगा। नागरिकों की किसी बिछड़ी श्रेणी के लिए नौकरियां आरक्षित रखी जा सकती है। इसी अनुच्छेद के कारण ही भारत में आरक्षित सीटें है
4 अस्पृश्यता की समाप्ति अनुच्छेद 17: इस अनुच्छेद के द्वारा अस्पृश्यता को समाप्त किया गया है। तथा व्यवस्था की गई है की अस्पृश्यता को किसी भी रुप में है व्यवहार में नहीं लाया जाएगा। अस्पृश्यता के परिणाम स्वरूप किसी भी प्रकार का बंधन लगाना या रोक लगाना कानूनन निषेध है। यदि कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार से अस्पृश्यता को व्यवहार में लाता है तो उसे कानून के अनुसार दंड दिया जाएगा।
5 उपाधियों की समाप्ति अनुच्छेद 18: सैनिक या शैक्षणिक उपाधियों को छोड़ कर राज्य द्वारा किसी भी नागरिक को कोई सम्मान नहीं दिया जाएगा। भारत का कोई भी नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा, कोई भी व्यक्ति जो भारत का नागरिक नहीं है तथा जो राज्यों के किसी लाभप्रद पर सुशोभित है, राष्ट्रपति की स्वीकृति के बिना किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि प्राप्त नहीं करेगा ।
कोई भी व्यक्ति जो राज्य के किसी लाभप्रद पद पर सुशोभित है, राष्ट्रपति की स्वीकृति के बिना कोई भी धन या किसी प्रकार का पद किसी विदेशी सरकार से स्वीकार नहीं करेगा।
2 स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद 19 से 22
स्वतंत्रता के अधिकारो के कई रुप हैं तथा भारतीय संविधान में अधिकार के भिन्न-भिन्न रूपों का वर्णन अनुच्छेद 19 से 22 तक किया गया है स्वतंत्रता के अधिकार के भिन्न भिन्न पक्षो का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है।
अनुछेद 19 के अंतर्गत 6 प्रकार की सवतंत्रता है।
1 भाषण देने तथा विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता: भारतीय नागरिकों को भाषण देने तथा अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता दी गई है। यह स्वतंत्रता असीमित नहीं है क्योंकि स्वतंत्रता पर कानून द्वारा उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। परन्तु यदि सरकार कानून द्वारा अनुचित पाबंदियां लगाती है, तो सर्वोच्च न्यायालय सरकार कि ऐसे फैसले को असंवैधानिक घोषित कर सकती है यह बात उल्लेखनीय है कि संविधान द्वारा प्रेस की स्वतंत्रता का विशेष रूप से वर्णन नहीं किया गया है। मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉक्टर अंबेडकर ने संविधान सभा में कहा था की प्रैस की स्वतंत्रता का विशेष वर्णन करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि प्रेस की स्वतंत्रता भाषण देने की तथा विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता में ही निहित है।
2 शास्त्रों के बिना शांतिपूर्ण ढंग से इकट्ठा होने की स्वतंत्रता: भारतीय नागरिकों को अपने विचार व्यक्त करने तथा दूसरों के विचार सुनने के योग्य बनाने के लिए इस अनुच्छेद द्वारा उनको शस्त्रों के बिना शांतिमय ढंग से एकत्रित होने की होने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है। नागरिकों कि इस स्वतंत्रता पर भी भारत की प्रभुसत्ता तथा अखंडता या सार्वजनिक व्यवस्था के हितों को सम्मुख रखकर उचित बंधन लगाए जा सकते हैं।
3 समुदाय या संघ बनाने की स्वतंत्रता: भारतीय नागरिकों को अपने उचित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु समूह या संघ बनाने की आज्ञा भारत का संविधान देता है। नागरिकों की स्वतंत्रता असीमित नहीं है। इस पर भी उचित प्रतिबंध लगाएं जा सकते हैं। यदि बात भारत की एकता व अखंडता को खतरा पैदा करने वाली हो।
4 समस्त भारत में भ्रमण करने की स्वतंत्रता: भारत एक विशाल देश है। इसमें विभिन्न जातियों धर्मों के लोग रहते हैं। इसीलिए भारतीय नागरिकों को समस्त देश में भ्रमण करने की स्वतंत्रता दी गई है। देश की किसी एक किनारे से दूसरे किनारे तक जाने के लिए कोई आज्ञा पत्र प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है।
5 देश के किसी भी भाग में रहने तथा निवास स्थान बनाने की स्वतंत्रता: भारतीय संविधान देशवासियों को यह स्वतंत्रता देता है कि वे भारत के किसी भी स्थान में अपना निवास स्थान बना सकते है। संविधान द्वारा दी गई इस स्वतंत्रता के फलस्वरुप ही आज हम देखते हैं कि प्रत्येक प्रांत के लोग भिन्न भिन्न भागों में निवास कर रहे हैं परंतु अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सरकार इस पर उचित प्रतिबंध भी लगा सकती है।
6 कोई भी रोजगार व्यवसाय या व्यापार करने की स्वतंत्रता: प्रत्येक नागरिक स्वेच्छा से किसी भी रोजगार या व्यवसाय को अपना सकता है। नागरिकों की स्वतंत्रता पर राज्य कानून द्वारा जनसाधारण के हितों के लिए उचित बंधन लगा सकती है। इसके अतिरिक्त किसी विशेष रोजगार के लिए राज्य की ओर से शैक्षणिक तकनीकी व्यापारिक योग्यताएं निश्चित की जा सकती हैं।
अनुच्छेद 20 किसी व्यक्ति को किसी ऐसे कानून का उल्लंघन करने पर दंड नहीं दिया जा सकता जो कानून उसके अपराध करने के समय लागू ना हो। किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक से अधिक बार दंडित नहीं किया जा सकता। किसी अपराधी को स्वयं के विरुद्ध गवाही देने के लिए विवश नहीं किया जा सकता।
अनुच्छेद 21 किसी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित विधि के अतिरिक्त जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता।
अनुच्छेद 22 कैदियों के अधिकारों की घोषणा करता है । इस अनुच्छेद के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उनके अपराध के संबंध में बताए बिना बंदी नहीं बनाया जा सकता। अपराधी को किसी भी वकील से परामर्श लेने की छूट है। अपराधी को बंदी बनाने के 24 घंटे के अंदर निकटवर्ती न्यायालय में पेश करना आवश्यक है।
3 शोषण के विरुद्ध अधिकार अनुच्छेद 23 से 24
इस अनुच्छेद के अंतर्गत नागरिकों को शोषण की विरुद्ध अधिकार प्रदान किया गया है अनुच्छेद 23 में व्यवस्था की गई है मानव व्यापार, बिना वेतन के बलपूर्वक कार्य करवाना तथा किसी अन्य कार्य को बलपूर्वक करवाने का प्रतिषेध किया गया है। इसका उल्लंघन करने पर दंड दिया जाएगा। सरकार सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए आवश्यक सेवा करने की योजना लागू कर सकती है।
अनुच्छेद 24 अनुसार 14 वर्ष से कम आयु के किसी बच्चे को किसी कारखाने या खान में या कठिन कार्य वाली नौकरी नहीं दी जा सकती। भारतीय संविधान में ऐसे अधिकार का होना अत्यावश्यक था ।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद 25 से 28
अनुच्छेद 25 में व्यवस्था की गई है किसी भी व्यक्ति को किसी भी धर्म को मानने तथा का प्रचार-प्रसार करने की स्वतंत्रता है परंतु उसका यह धर्म सार्वजनिक व्यवस्था नैतिकता और मौलिक अधिकारों के विरोधी ना हो। किसी धार्मिक विचार से संबंधित आर्थिक वित्तीय राजनीतिक या किसी अन्य और सांप्रदायिक कार्यों को नियमबद्ध या सीमित करने के लिए राज्य कानून बना सकता है।
अनुच्छेद 26 के अंतर्गत यह व्यवस्था की गई है कि प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी वर्ग को धर्म के लिए संस्थाएं स्थापित करने का अधिकार है। इसके अतिरिक्त उन्हें अपने धर्म के कार्य का प्रबंध करने, चल तथा अचल संपत्ति प्राप्त करने तथा रखने एवं ऐसी संपत्ति का कानून अनुसार प्रबंध करने का भी अधिकार प्राप्त है। अनुच्छेद 27 के अंतर्गत यह व्यवस्था की गई है कि किसी भी व्यक्ति को कोई ऐसा कर देने के लिए विवश नहीं किया जा सकता जिसका एकत्रित किया गया धन किसी विशेष धर्म या धार्मिक संप्रदाय की उन्नति के लिए व्यय किया जाना हो।
अनुछेद 28 में यह व्यवस्था की गई है किसी भी सरकारी शैक्षणिक संस्थान मैं कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती है । ऐसी शिक्षण संस्थायें जो कि राज्य से मान्यता प्राप्त है या राज्य से वित्तीय सहायता प्राप्त करती है, किसी व्यक्ति को संस्थाओं में दी जा रही धार्मिक शिक्षा या धार्मिक पूजा पाठ में सम्मिलित होने के लिए विवश नहीं किया जा सकता।
संस्कृति तथा शैक्षणिक अधिकार अनुच्छेद 29 और 30
अनुच्छेद 29 के अंतर्गत नागरिकों को तथा अल्पसंख्यक वर्ग को सांस्कृतिक तथा शिक्षा संबंधी अधिकार दिए गए हैं। अनुच्छेद 29 यह व्यवस्था करता है कि भारत की भूमि या उसके किसी भाग में रहने वाले नागरिकों को अपनी भाषा लिपि संस्कृति को सुरक्षित रखने का अधिकार है। सरकारी शिक्षण संस्थाएं या राज्य से वित्तीय सहायता प्राप्त करने वाले संस्थाओं में किसी नागरिक को धर्म नस्ल जाति भाषा के आधार पर प्रवेश देने से इनकार नहीं कर सकता है ।
अनुछेद 30 में यह व्यवस्था की गई है कि धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यकों को स्वेच्छा से शिक्षण संस्थाएं स्थापित करने का तथा उन का प्रबंध करने का अधिकार है। शिक्षण संस्थाओं को सहायता देते समय किसी शिक्षण संस्थान से किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा।
संविधानिक उपचारों का अधिकार अनुच्छेद 32
मौलिक अधिकारों को संविधान में अंकित करना सर्वथा व्यर्थ होता यदि इन अधिकारों को सुरक्षा देने का कोई प्रबंधान ना होता। इसीलिए संविधान में अंकित मौलिक अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए अनुच्छेद 32 को संविधान में अंकित किया गया । इस प्रकार यदि किसी व्यक्ति के अधिकारों की अवहेलना होती है तो वहां व्यक्ति सीधे सर्वोच्च न्यायालय में अपने अधिकारों के लिए लड़ सकता है। सर्वोच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों को लागू करवाने के लिए निम्नलिखित लेख जारी करता है।
1 बंदी प्रत्यक्षीकरण लेख
2 परमादेश लेख
3 प्रतिषेध लेख
4 उत्प्रेषण लेख
5 अधिकार पृच्छा लेख
व्यक्ति के व्यक्तिगत विकास हेतु अधिकारों की आवश्यकता होती है | ये भारतीय संविधान के भाग तीन में मौलिक अधिकारों के रूप में भारतीय नागरिकों को प्राप्त है |
अधिकारों की आवश्यकता निम्न कारणों से हैं :
(1) अधिकार मानव के व्यक्तित्व को सँवारते हैं |
(2) लोकतंत्र के लिए नागरिक स्वतंत्रताएँ अनिवार्य हैं, क्योंकि कोई भी राज्य मनमानी ढंग से नागरिक अधिकारों का दमन नहीं कर सकता, लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरी है |
(3) अधिकार शासन की मनमानी शक्तियों और कार्यों पर रोक का काम करते हैं |
(4) गरीबी और उत्पीडन से राहत पाने के लिए हमारे संविधान ने बहुत से अधिकार दिए हैं | इन नागरिक अधिकारों की रक्षा सर्वोच्य न्यायालय करता है |
अधिकारों का घोषणा पत्र : संविधान द्वारा प्रदत्त और संरक्षित अधिकारों की सूची को ‘अधिकारों का घोषणा पत्र’ कहते हैं जिसकी मांग 1928 में नेहरु जी ने उठाई थी |
नागरिक स्वतंत्रता की प्राप्ति: नागरिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए जनता को निरंकुश राजाओं के विरुद्ध घोर संघर्ष करना पड़ा था | ये स्वतंत्रताएँ थी मनमाने ढंग से गिरफ़्तारी पर रोक, भाषण की स्वतंत्रता एवं धार्मिक स्वतंत्रता आदि | शुरू-शुरू में इन्हें नागरिक स्वतंत्रता कहा जाता था |
मानव अधिकार घोषणा पत्र : 1789 में फ़्रांस की क्रांति के पश्चात् फ्रांस की राष्ट्रिय विधानसभा ने एक सुप्रसिद्ध मानव अधिकार घोषणा-पत्र जारी किया | इसमें यह घोषणा की गयी थी कि “सारे मनुष्य समान पैदा होते हैं, अत: उनके अधिकार समान होने चाहिए |”
मानवाधिकार: एक समान्य मनुष्य के जीवन जीने के लिए तथा उनके व्यक्तिगत विकास के लिए कुछ अधिकार होने चाहिए इसी कड़ी में, सितंबर 1789 में अमेरिकी कांग्रेस ने संविधान में दस संशोधन स्वीकार किये तथा दिसंबर 1791 तक वे अमेरिकी सविधान के अंग बन गए | सामूहिक रूप से उन्हें अधिकार पत्र (बिल ऑफ़ राइट्स ) कहा जाता है | इस प्रावधान में निम्न अधिकार थे - भाषण की स्वतंत्रता, समाचारपत्रों की स्वतंत्रता, धार्मिक स्वतंत्रता, शांतिपूर्वक सभा-सम्मेलन करने का अधिकार, संपति की जब्ती से सरक्षण का अधिकार तथा निर्मम दंड से सुरक्षा आदि |
लोकहित मुकदमा : भारत में गरीबी से ग्रस्त और उत्पीडन से राहत पाने के लिए कोई साधन नहीं, कई बार सरेआम असंवैधानिक तरीके से लोगों के साथ अन्याय होता है और कानून वहाँ कुछ नहीं कर पाता है | इस प्रकार जनहित के लिए अदालत में किये गए मुकदमे को जनहित मुकदमा (public interest litigation, PIL) कहते हैं |
मौलिक अधिकार | fundamental rights
Reviewed by Narender
on
September 04, 2018
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